बेला के साथ होती है चातुर्मास की स्थापना

बेला के साथ होती है चातुर्मास की स्थापना

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  • 20 साल बाद आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का चातुर्मास इंदौर में, प्रतिभा स्थली पर तैयारी शुरू
    इंदौर। आचार्य विद्यासागर महाराज का चातुर्मास 20 सालों बाद एक बार फिर इंदौर में होने जा रहा है। इसको लेकर सांवेर रोड स्थित तीर्थोधाम पर तैयारियां शुरू हो गई है। 12 मुनियों के साथ आचार्य अपना चातुर्मास करेंगे। पहली बार आचार्यश्री का सानिध्य लगभग 8 माह समाजजनों को मिला है।

आचार्य विद्यासागर महाराज के शिष्य मुनि संधान सागर महाराज की जब से दीक्षा हुई उसी वर्ष से बेला ( दो उपवास) के साथ चातुर्मास की स्थापना व निष्ठापना होती है। दिगंबर जैन मुनि 4 माह तक एक ही स्थान पर रहकर धर्म साधना करते है। आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को यह स्थापना होती है। अपवाद रूप में श्रावण कृष्ण चतुर्थी तक यह हो सकती है। जिसका निष्ठापन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को होता है। इस वर्ष आचार्यश्री विद्यासागर महाराज का चातुर्मास तीर्थोदय धाम रेवती रेंज में भव्यता से होने जा रहा है। उनके साथ अभी 12 मुनिराज है। मुनि सौम्य सागर महाराज, दुर्लभ सागर महाराज, निर्दोष सागर महाराज, निलोभ सागर महाराज, निरोग सागर महाराज, निरामय सागर महाराज, निराकुल सागर महाराज, निरुपम सागर महाराज, निरापद सागर महाराज, शीतल सागर महाराज, श्रमण सागर महाराज, संधान सागर महाराज साथ में है।
गुरु को शिष्य मिले गुरु
मुनि संधान सागर महाराज ने बताया कि गुरु पूर्णिमा का सभी धर्मो में अपना महत्व है। वैसे तो कहा ही है कि जिसके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं हुआ। किसी न किसी रूप में गुरु के बिना जीवन आगे बढ़ ही नहीं सकता है। लेकिन गुरु, शिक्षा गुरु, दीक्षा गुरु आदि कई रुपों में गुरु की भूमिका होती है। जैन दर्शन में तो श्रावक के 6 कत्र्तव्य मे ंगुरु उपासना एक कत्र्तव्य प्रतिदिन करने को कहा है। भगवान महावीर स्वामी को जब केवल ज्ञान की प्राप्ति हो गई, तब 66 दिन तक भगवान की दिव्य देशना ही नहीं हुई। कारण किसी को समझ में नहीं आया। बिना कारण के कभी कार्य होता भी नहीं है। इधर इंद्रभूति गौतम के मन में कुछ शंका हुई। जैसे भी वह भगवान महावीर के समोशरण में पहुंचा। दूर मानस्तंभ को देखने मात्र से उसका मान भंग हो गया और महावीर स्वामी का शिष्य बन गया। जिस दिन गुरु को शिष्य और शिष्य को गुरु मिले वहीं गुरु पूर्णिमा का दिन है।

पांच वर्ष पूर्व हुई थी मुनि दीक्षा
आचार्य विद्यासागर महाराज ने गुरु पूर्णिमा को सागर जिले में स्थित अतिशय क्षेत्र बीना में 3 मुनियों की दीक्षा हुई थी। जिनमें प्रथम मुनि संधान सागर, दूसरे मुनि संस्कार सागर व तीसरे मुनि ओंकार सागर महाराज थे। अभी आचार्यश्री के साथ तीन में से मात्र मुनि संधान सागर महाराज है। शेष दो मुनिराज हाल ही में उपसंघ के साथ विहार कर गए। विशेष बात यह है कि गुरुवर द्वारा गुरु पूर्णिणा पर यह प्रथम दीक्षाएं दी गई। बीना बारह जी क्षेत्र पर भी प्रथम बार ही दीक्षा दी। मरूभूमि से संघ में एकमात्र मुनिराज है।
गुरु वहीं हो सकता है जो अपना गरूर तोड़ ले
गुरु पूर्णिमा को लेकर आचार्य ज्ञान सागर महाराज हमेशा कहा करते थे कि संघ को गुरुकुल बनाने के लिए विद्याधर काम करना। उन्होंने ही अपने शिष्य विद्यासागर महाराज से अनुरोध किया की आप मेरे गुरु बनकर मुझे कृतज्ञ करें।

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