67 दिनों में 13 हजार टन आटे के साथ 2 हजार टन दाल खाई लॉक डाउन में

67 दिनों में 13 हजार टन आटे के साथ 2 हजार टन दाल खाई  लॉक डाउन में

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  • सरकार का 14 करोड़ 87 लाख रुपए खर्च हुए तो 8 करोड़ से अधिक का दान भी आया

  • इंदौर। कई तरह के कीर्तिमान बना चुके इंदौर में लॉकडाउन के 3 महीनों में भी अलग ही कीर्तिमान बनाया और देश में सबसे ज्यादा राशन के पैकेट लंच के पैकेट बांटने के रिकॉर्ड के साथ ही बायपास से गुजर रहे श्रमिकों की सेवा के जज्बे का भी एक रिकॉर्ड जो बरसों बरस तक इंदोरिया की सेवा को याद करेगा। लॉकडाउन के चार दिन बाद 29 मार्च से 3 जून तक इंदौर में राशन किट, लंच पैकेट का वितरण और शहर में जगह-जगह सैनिटाइज करने आदि कार्य के लिए लगभग 27 करोड़ रूपए खर्च किए गए।
    25 मार्च को कोरोना की रोकथाम के लिए लागू किए लॉक डाउन के साथी लोगों का घरों से निकलना बंद हो गया। शहर के सारे बाजारों में ताले लग। रोज कमाकर अपना पेट भरते भरने वालों के लिए मुसीबत खड़ी हो गई। ऐसे लोगों के लिए इंदौर जिला प्रशासन और नगर निगम ने 67 दिनों तक लगातार कच्चा राशन और भोजन के पैकेट पहुंचाए। 25 मार्च से लोगों का घरों से निकलना बंद होते ही कई लोगों के सामने जब दो वक्त की रोटी का संकट खड़ा हो गया। ऐसी स्थिति में घर-घर तक राशन पहुंचाकर इंदौर ने एक नया कीर्तिमान बनाया। कोरोना कॉल में इंदौर अकेला ऐसा शहर था जिसमें लाखों पैकेट भोजन और लाखों की तादाद में राशन के पैकेट वितरित किए गए इसके लिए नगर निगम सहित अन्य विभागों के अधिकारी कर्मचारियों ने दिन रात काम किया। लोगों को दो वक्त का भोजन मुहैया कराया जा सके इसके लिए एक हेल्पलाइन नंबर उपलब्ध कराया गया। राशन की पूर्ति के लिए सरकारी खजाना खाली करने के साथ ही शहर के बड़े कारोबारियों का भी सहयोग लिया।
    15.30 लाख राशन पैकेट बांटे
    29 मार्च से नगर निगम ने शहर में गरीब परिवारों को राशन उपलब्ध कराने का काम शुरू कर दिया था। निगम के कर्मचारियों ने 29 मार्च से 3 जून तक 67 दिनों में 15 लाख 30 हजार राशन के पैकेट बांटे जबकि ऐसे लोग जिनके पास भोजन बनाने की व्यवस्था भी नहीं थी,उनके लिए लंच के 20 लाख से अधिक लंच के पैकेट बांटे गए।
    शुरुआत में दानदाताओं ने किया सहयोग
    29 मार्च से राशन वितरण का काम शुरू कर दिया लेकिन नगर निगम ने प्रारंभ में व्यवस्था नहीं हो पाने के कारण शहर के लोगों से दान की अपील की और पहले सप्ताह में ही आटा, दाल, चावल, तेल, शक्कर और नगद राशि दान में मिलना शुरू हो गया। अनुमान है कि इंदौरियों ने 8 करोड़ रुपए से अधिक का राशन एवं नगद का सहयोग किया। प्रारंभ में दानदाताओं के सहयोग से ही राशन बंटवाने का कार्य शुरू हुआ जो लगातार 67 दिनों तक चला।
    600 कर्मचारी और 300 गाड़ी लगी व्यवस्था में
    नगर निगम के 300 कर्मचारियों सहित अन्य विभागों के कर्मचारियों को मिलाकर लगभग 600 कर्मचारी काम कर रहे थे जबकि निगम की जीप और ट्रक को सहित 300 गाड़ी भी राशन वितरण व्यवस्था में लगी थी।
    कॉल सेंटर पर भी 60 लोगों का स्टाफ
    लॉकडाउन के दौरान लोगों की समस्याएं जानने उन्हें राशन किट उपलब्ध करवाने के लिए एक कॉल सेंटर की स्थापना की गई थी। इस अस्थाई रूप से बनाए गए कॉल सेंटर पर 60 कर्मचारी तैनात थे। निगम के अपर आयुक्त संदीप सोनी के अनुसार कॉल सेंटर पर प्रतिदिन 60 से 70 हजार फोन आते थे जिसमें करीब 10,000 फोन कॉल पर बात हो पाती थी।
    छग व पंजाब से बुलवाए चावल
    लोगों को भेजी गई राशन किट के लिए प्रतिदिन 200 टन आटे की जरूरत होती थी। इसके लिए इंदौर की तीन आटा मिलों के साथ देवास, निमरानी और खरगोन की एक आटा मिल से गेहूं पिसवाकर आटे की आपूर्ति की गई। इसी तरह प्रतिदिन 30 टन चावल की पूर्ति के लिए इंदौर में चावल नहीं मिलने पर कटनी और मंडला से चावल बुलवाया उसके बाद भी पूर्ति नहीं हुई तो पंजाब से चावल बुलवाए।
    प्रतिदिन होती थी इतनी खपत
    लॉकडाउन के दौरान राशन वितरण के लिए प्रतिदिन 200 टन से अधिक आटा, 30 टन दाल, 30 टन चावल, 15 टन से अधिक तेल, 20 टन नमक, 6000 किलो पिसी मिर्च, 6000 किलो हल्दी और 15 टन शकर की खपत होती थी। जिसकी पैकिंग के लिए करीब 100 लोग काम करते थे।
    सरकार के 17 करोड रुपए खर्च हुए
    लॉकडाउन में राशन की आपूर्ति के लिए सरकार ने इंदौर के लिए 18 करोड रुपए की स्वीकृति दी थी, जिसमें राशन वितरण का खर्च लगभग 14 करोड़ 87 लाख रुपए आया। इसी तरह निगम के कर्मचारियों के लिए मास्क, सैनिटाइजर आदि साधनों और शहर को सैनिटाइज करने के लिए करीब पौने तीन करोड़ रूपए खर्च किए गए। जबकि करीब 7 से 8 करोड़ रुपए का सहयोग दानदाताओ से मिला।

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